काठमांडू ।। नेपाल नरेश वीरेंद्र की हत्या के नौ साल बाद लिखी गई एक किताब में यह आरोप लगाया गया है कि राजमहल में हुए उस निर्मम हत्याकांड के पीछे संभवतः भारत का हाथ था। किताब लिखी है नेपाल के पूर्व पैलेस मिलिट्री सेक्रेट्री जनरल बिबेक शाह ने।
यह दावा नाटकीय अंदाज में एक निजी समाचार चैनल पर टॉक शो के दौरान सोमवार रात को किया गया। दो दिन बाद राजा वीरेंद्र की 65वीं जयंती है।
'माइले देखेको दरबार' (राजमहल, जैसा मैंने देखा) नाम की अपनी इस किताब में शाह ने यह भी लिखा है कि नई दिल्ली ने राजतंत्र विरोधी शक्तियों (माओवादियों) को ट्रेनिंग दी और चूंकि उन्हें यह बात मालूम हो गई थी, इसलिए उनसे इस्तीफा मांग लिया गया।
पूर्व जनरल शाह ने कहा कि बुधवार को वह औपचारिक तौर पर इस पुस्तक का विमोचन करेंगे। पुस्तक के अंश मंगलवार को नेपाल के कम से कम दो दैनिकों में प्रकाशित हुए।
राजा वीरेंद्र और राजा ज्ञानेंद्र दोनों के मिलिट्री सेक्रेट्री रह चुके जनरल शाह के मुताबिक 1 जून 2001 को राजमहल में हुए सामूहिक जनसंहार के वक्त ट्रिगर तो बेशक दीपेंद्र ने दबाया, लेकिन उन्हें इसके लिए विदेशी ताकतों ने उकसाया होगा।
उन्होंने लिखा है कि राजा वीरेंद्र ने नेपाल के पुराने पड़ चुके शस्त्रागार को आधुनिक बनाने की कोशिश की थी। इसके लिए एक विदेशी बंदूक निर्माता से बात भी हो गई थी। तय हुआ था कि नेपाल में बंदूकें असेंबल होंगी जो नेपाल सरकार खरीदेगी और यहां से दक्षिण एशिया में बेची जाएंगी। पर, शाह के मुताबिक भारत इस सौदे के पक्ष में नहीं था। उसे इस बात का भी डर था कि अगर ये बंदूकें माओवादियों के हाथों पहुंच जाएंगी तो क्या होगा।
शाह का दावा है कि वीरेंद्र और ज्ञानेंद्र दोनों की भारत यात्रा के दौरान भारतीय नेताओं ने इस बात के लिए दबाव डाला कि नेपाल देसी इनसास समूह के हथियार 'दोस्ताना कीमत' पर खरीद ले। बाद में भारत ने ये हथियार 70 फीसदी सबसिडी पर नेपाल को सप्लाई किए।
शाह ने यह भी लिखा है कि नेपाल आर्म्ड पुलिस की एक टीम ट्रेनिंग के लिए चक्रौता (उत्तरांचल) गई थी। वहां स्थानीय लोगों और ट्रेनरों ने इस टीम को बताया कि ऐसी ही ट्रेनिंग अन्य ग्रुप्स (माओवादियों) को भी दी जा चुकी है। शाह के मुताबिक बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी और श्रीलंका के तमिल ग्रुपों को भी वहां ट्रेनिंग दी जा चुकी थी।
शाह ने लिखा है कि जब उन्हें एक सीनियर पुलिस ऑफिसर ने उन्हें इसकी जानकारी दी तो उन्होंने इस बारे में सचाई का पता लगाना शुरू किया। लेकिन इसी वजह से भारत के दबाव में राजा ज्ञानेंद्र ने उनसे इस्तीफा ले
लिया।by punem sexsena
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